लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2777
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 2 

उपग्रहों के प्रकार

(Types of Satellites)

प्रश्न- उपग्रहों की कक्षा (Orbit) एवं उपयोगों के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर -

उपग्रहों की कक्षा एवं उपयोगों के आधार पर वर्गीकरण

उपग्रहों (satellite) को पृथ्वी की जिस कक्षा (orbit) में प्रक्षेपित किया जाता है उसकी पृथ्वी से दूरी एवं उपग्रहों के कक्षा में घूमने की स्थिति तथा उपग्रहों के उपयोग के आधार पर मुख्यतः तीन भागों में विभक्त किया सकता है-

1. भू-स्थिर उपग्रह (Geostationary satellite) - इस प्रकार के उपग्रह पृथ्वी से लगभग 36,000 किमी० की ऊँचाई पर स्थित कक्षा में चक्कर लगाते हैं। ये उपग्रह पृथ्वी की अपनी धुरी पर घूमने की दिशा अर्थात् पश्चिम से पूरब की ओर चक्कर लगाते हैं और 36,000 किमी० की ऊँचाई पर इन उपग्रहों के चक्कर लगाने की गति पृथ्वी के घूमने की गति के सापेक्ष होती है, जिसके फलस्वरूप यह निरन्तर पृथ्वी के एक निश्चित भाग पर लगातार दृष्टि रखते हैं। इसी कारण से इन उपग्रहों को भू-स्थिर उपग्रह या जियोस्टेशनरी उपग्रह कहते हैं। इन्हें भू-समकालिक उपग्रह (geo-synchronous) भी कहा जाता है। इन उपग्रहों का उपयोग दूरसंचार जैसे कि दूरसंचार नेटवर्क रेडियो, दूरदर्शन प्रसारण आदि के लिए किया जाता है। भारत द्वारा प्रक्षेपित किये गये कुछ उपग्रहों के नाम हैं-जी सैट-1 &2; एड्सैट-4; इनसैट-4 एवं जी सैट-4 इत्यादि।

2. सूर्य-समकालिक उपग्रह (Sunychronus satellite)/ ध्रुवीय उपग्रह (Polar satellite)/सुदूर संवेदन (Remote sensing) उपग्रह - इस तरह के उपग्रह को पृथ्वी से 700-900 किमी की ऊँचाई पर स्थित कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है तथा यह पृथ्वी के एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव की ओर चक्कर लगाते हैं। ये उपग्रह जब उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर चक्कर लगाते हैं तब इस परिक्रमण को डिसेन्डिंग (descending) मोड कहते हैं और दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव तक के परिक्रमण को ऐसेन्डिंग (ascending) मोड कहते हैं। ध्रुवीय कक्षा में एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव की ओर चक्कर लगाने के कारण इनको ध्रुवीय/पोलर उपग्रह भी कहते हैं।

ऐसे ध्रुवीय/पोलर उपग्रह जो डाटा कलेक्शन/डाटा संग्रह हेतु सूर्य से उत्सर्जित विकिरण/radiation  (विद्युत चुम्बकीय तरंगों/ Electro magnetic radiation) की दृश्यमान सीमा (visible range) पर निर्भर करते हैं उन उपग्रहों को कुछ इस तरह से पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है जिससे कि यह पृथ्वी के प्रत्येक भू-भाग की तस्वीर लगभग एक समय पर (प्रात: 10:30 बजे के आस-पास) एकत्रित करें। इसका मुख्य कारण सूर्य की इस समयावधि में विशिष्ट स्थिति एवं सूर्य की किरणों का विशिष्ट झुकाव होना है, जिस कारण इससे प्रदीप्त धरातलीय संरचनाओं व इन्फ्रास्ट्रक्चर के सही आंकलन में मदद मिलती है। डाटा संग्रह के दृष्टिकोण से यह समय सर्वोत्तम समझा जाता है। इसी कारण सूर्य की इस समयावधि में विशिष्ट स्थिति एवं सूर्य की किरणों का विशिष्ट झुकाव होना है, जिस कारण इससे प्रदीप्त धरातलीय संरचनाओं व इन्फ्रास्ट्रक्चर के सही आंकलन में मदद मिलती है। डाटा संग्रह के दृष्टिकोण से यह समय सर्वोत्तम समझा जाता है। इसी कारण इन उपग्रहों को सनसिनक्रानस उपग्रह/सूर्य समकालिक उपग्रह भी कहा जाता है। परन्तु ऐसे पोलर उपग्रह जो डाटा संग्रह हेतु दृश्यमान सीमा/ऑप्टिकल रेन्ज के विकिरण (radiation) पर निर्भर नहीं होते हैं, उनको प्रातः 10:30 बजे के अलावा दूसरे समयावधि पर भी समक्रमिक अर्थात् सिंक्रोनाइज (synchronise) किया जा सकता है जैसे कि रिसैट उपग्रह (RISAT/radar imaging satellite) आदि रात्रि के समय भी तस्वीरें ले सकते हैं। क्योंकि यह उपग्रह भू-स्थिर उपग्रह के सापेक्ष धरती के कहीं अधिक नजदीक होते हैं अतः इनके द्वारा कहीं बेहतर फोटो लिये जा सकते हैं तथा ज्यादा सटीक स्थानिक आंकड़ों का संग्रहण किया जा सकता है। इन उपग्रहों के सुदूर संवेदनीय विशेषताओं के कारण ही इन्हें सुदूर संवेदी उपग्रह या रिमोट सेन्सिंग उपग्रह के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के उपग्रहों का पृथ्वी पर घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं, संसाधनों व संरचनाओं के अध्ययन एवं प्रबन्धन में उपयोग किया जाता है। एक निश्चित समयान्तराल के बाद इन उपग्रह द्वारा पुनः पूर्वालोकित क्षेत्र की तस्वीरें लेने के गुण से वैज्ञानिक इन उपग्रहों से प्राप्त तस्वीरों का प्रयोग पृथ्वी की सतह में होने वाले निरन्तर बदलावों के अध्ययन हेतु भी करते हैं। उदाहरणार्थ-किसी कस्बे में विस्तार सम्बन्धी अध्ययन जैसे कि विस्तार की गति और दिशा तथा भूमि उपयोग एवं भूमि आच्छादन में बदलाव आदि का अध्ययन इस प्रकार के उपग्रह द्वारा किया जाता है।

IRS सीरिज, कार्टोसेट-2, रिर्सोसिसेट-2A, एस्ट्रोसेट, सिसैट, सरल, मेघा ट्रॉपिक्स इत्यादि इस प्रकार के उपग्रहों के उदाहरण हैं।

3. वैश्विक स्थान-निर्धारण उपग्रह प्रणाली (Global Positioning Satellite System अथवा G.P.S. System) - वैश्विक स्थान निर्धारण उपग्रह प्रणाली अथवा Global Positioning Satellite System (G.P.S.) कई उपग्रहों का एक ऐसा समूह होता है जिसका प्रयोग किसी भी वस्तु के सटीक स्थान निर्धारण हेतु तथा उसके संचरण में मदद के लिए किया जाता है। यह प्रणाली भौगोलिक स्थिति और समय से सम्बन्धित सूचना जी०पी०एस० रिसीवर तक पहुँचाती है। इस प्रकार की कई प्रणाली अलग-अलग देशों द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित की गई हैं। सभी ऐसी प्रणालियों में लगभग 24 उपग्रहों का नेटवर्क होता है जो कि पृथ्वी से 20,000 से 26,000 किमी दूर लगभग ध्रुवीय कक्षा में चक्कर लगाता है।

अमेरिका के द्वारा प्रक्षेपित किये गये जी०पी०एस० उपग्रह के समूह को NAVSTAR (Navigational Satellite Timing & Ranging) नाम से सम्बोधित किया जाता है। अन्य देशों ने भी अपने जी०पी०एस० उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित किये हैं, जैसे कि रूस का GLONASS (Globalanaya Navigationnaya Sputnikovaya Sistema), चीन का BEIDOU (बेइदोअ) (Chinese Name of Ursa) तारा मण्डल जिसका उपयोग North Star को खोजने में होता है) or CNSS (Compass Navigational Satellite System), यूरोपियन स्पेस एजेन्सी का GNSS (Global Navigation Satellite System), जापान का Q

IRNSS (Indian Regional Navigational Satellite System) or NAVIC (Navigation with Indian Constellation) I

जी०पी०एस० का उपयोग स्थिति/लोकेशन (अपनी लोकेशन जानने के लिए), नेविगेशन/ संचरण (एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए), ट्रैक्किंग/मार्गन (किसी वस्तु या वाहन को ट्रैक करने के लिए), मैपिंग/मानचित्रण (दुनिया का नक्शा बनाने के लिए) एवं समय (सही समय जानने के लिए) किया जाता है। इसका उपयोग आम नागरिकों द्वारा गूगल मैप, उबर, ओला, स्विगी व इसी प्रकार के अन्य ऐप का प्रयोग करते हुए किया जाता है जो लोकेशन आधारित सेवाएं प्रदान करते हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत किसी वस्तु के पृथ्वी पर स्थिति का आंकलन अक्षांश (latitude), देशान्तर (longitude) एवं उन्नतांश (altitude) के रूप में पृथ्वी की कक्षा में जी०पी०एस० उपग्रहों के समूह द्वारा भेजे जाने वाले संकेतों के आधार पर किया जाता है। वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली के तीन भाग होते हैं-

(i) अंतरिक्ष खण्ड (Space segment) - इसमें जी०पी०एस० उपग्रहों का समूह आता है। प्रत्येक जी०पी०एस० रिसीवर (उपयोगकर्ता खण्ड) कम से कम चार उपग्रहों का अपने स्थान निर्धारण के लिए इस्तेमाल करता है अर्थात् किसी भी जी०पी०एस० रिसीवर की स्थिति का निर्धारण कम से कम चार उपग्रहों से प्राप्त सिग्नल्स के आधार पर किया जाता है।

(ii) नियंत्रण खण्ड (Ground Controlling Station) - ग्राउण्ड कंट्रोल स्टेशन उपग्रहों की कक्षा को मानिटर, नियंत्रण/कंट्रोल (control) व बरकरार रखने/सही बनाये रखने/मेंटेन (maintain) करने की भूमिका निभाता है ताकि, यह सुनिश्चित किया जा सके कि कक्षा से उपग्रहों के विचलन और जी०पी०एस० टाइमिंग निर्धारित छूट के स्तर/टालरेंस लेवल (tolerance level) के भीतर है।

(iii) उपयोगकर्ता खण्ड (Receiver Segment) - उपयोगकर्ता खण्ड में जी०पी०एस० सिग्नल रिसीवर आते हैं जो कि उपग्रहों से सिग्नल रिसीव कर अपनी स्थिति का आंकलन करते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सुदूर संवेदन से आप क्या समझते हैं? विभिन्न विद्वानों के सुदूर संवेदन के बारे में क्या विचार हैं? स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- भूगोल में सुदूर संवेदन की सार्थकता एवं उपयोगिता पर विस्तृत लेख लिखिए।
  3. प्रश्न- सुदूर संवेदन के अंतर्राष्ट्रीय विकास पर टिप्पणी कीजिए।
  4. प्रश्न- सुदूर संवेदन के भारतीय इतिहास एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- सुदूर संवेदन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- सुदूर संवेदन को परिभाषित कीजिए।
  7. प्रश्न- सुदूर संवेदन के लाभ लिखिए।
  8. प्रश्न- सुदूर संवेदन के विषय क्षेत्र पर टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- भारत में सुदूर संवेदन के उपयोग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
  10. प्रश्न- सुदूर संवेदी के प्रकार लिखिए।
  11. प्रश्न- सुदूर संवेदन की प्रक्रियाएँ एवं तत्व क्या हैं? वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- उपग्रहों की कक्षा (Orbit) एवं उपयोगों के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत के कृत्रिम उपग्रहों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- कार्य के आधार पर उपग्रहों का विभाजन कीजिए।
  15. प्रश्न- कार्यप्रणाली के आधार पर सुदूर संवेदी उपग्रह कितने प्रकार के होते हैं?
  16. प्रश्न- अंतर वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
  17. प्रश्न- भारत में उपग्रहों के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- भू-स्थाई उपग्रह किसे कहते हैं?
  19. प्रश्न- ध्रुवीय उपग्रह किसे कहते हैं?
  20. प्रश्न- उपग्रह कितने प्रकार के होते हैं?
  21. प्रश्न- सुदूर संवेदन की आधारभूत संकल्पना का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के सम्बन्ध में विस्तार से अपने विचार रखिए।
  23. प्रश्न- वायुमण्डलीय प्रकीर्णन को विस्तार से समझाइए।
  24. प्रश्न- विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रमी प्रदेश के लक्षण लिखिए।
  25. प्रश्न- ऊर्जा विकिरण सम्बन्धी संकल्पनाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। ऊर्जा
  26. प्रश्न- स्पेक्ट्रल बैण्ड से आप क्या समझते हैं?
  27. प्रश्न- स्पेक्ट्रल विभेदन के बारे में अपने विचार लिखिए।
  28. प्रश्न- सुदूर संवेदन की विभिन्न अवस्थाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- सुदूर संवेदन की कार्य प्रणाली को चित्र सहित समझाइये |
  30. प्रश्न- सुदूर संवेदन के प्रकार और अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- सुदूर संवेदन के प्लेटफॉर्म से आपका क्या आशय है? प्लेटफॉर्म कितने प्रकार के होते हैं?
  33. प्रश्न- सुदूर संवेदन के वायुमण्डल आधारित प्लेटफॉर्म की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- भू-संसाधन उपग्रहों को विस्तार से समझाइए।
  35. प्रश्न- 'सुदूर संवेदन में प्लेटफार्म' से आप क्या समझते हैं?
  36. प्रश्न- वायुयान आधारित प्लेटफॉर्म उपग्रह के लाभ और कमियों का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- विभेदन से आपका क्या आशय है? इसके प्रकारों का भी विस्तृत वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- फोटोग्राफी संवेदक (स्कैनर ) क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- सुदूर संवेदन में उपयोग होने वाले प्रमुख संवेदकों (कैमरों ) का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- हवाई फोटोग्राफी की विधियों की व्याख्या कीजिए एवं वायु फोटोचित्रों के प्रकार बताइये।
  41. प्रश्न- प्रकाशीय संवेदक से आप क्या समझते हैं?
  42. प्रश्न- सुदूर संवेदन के संवेदक से आपका क्या आशय है?
  43. प्रश्न- लघुतरंग संवेदक (Microwave sensors) को समझाइये |
  44. प्रश्न- प्रतिबिंब निर्वचन के तत्वों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- सुदूर संवेदन में आँकड़ों से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- उपग्रह से प्राप्त प्रतिबिंबों का निर्वचन किस प्रकार किया जाता है?
  47. प्रश्न- अंकिय बिम्ब प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- डिजिटल इमेज प्रक्रमण से आप क्या समझते हैं? डिजिटल प्रक्रमण प्रणाली को भी समझाइए।
  49. प्रश्न- डिजिटल इमेज प्रक्रमण के तहत इमेज उच्चीकरण तकनीक की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- बिम्ब वर्गीकरण प्रक्रिया को विस्तार से समझाइए।
  51. प्रश्न- इमेज कितने प्रकार की होती है? समझाइए।
  52. प्रश्न- निरीक्षणात्मक बिम्ब वर्गीकरण और अनिरीक्षणात्मक बिम्ब वर्गीकरण के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
  53. प्रश्न- भू-विज्ञान के क्षेत्र में सुदूर संवेदन ने किस प्रकार क्रांतिकारी सहयोग प्रदान किया है? विस्तार से समझाइए।
  54. प्रश्न- समुद्री अध्ययन में सुदूर संवेदन किस प्रकार सहायक है? विस्तृत विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- वानिकी में सुदूर संवेदन के अनुप्रयोगों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- कृषि क्षेत्र में सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी की भूमिका का सविस्तार वर्णन कीजिए। साथ ही, भारत में कृषि की निगरानी करने के लिए सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने हेतु सरकार द्वारा आरम्भ किए गए विभिन्न कार्यक्रमों को भी सूचीबद्ध कीजिए।
  57. प्रश्न- भूगोल में सूदूर संवेदन के अनुप्रयोगों पर टिप्पणी लिखिए।
  58. प्रश्न- मृदा मानचित्रण के क्षेत्र में सुदूर संवेदन के अनुप्रयोगों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- लघु मापक मानचित्रण और सुदूर संवेदन के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  60. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र का अर्थ, परिभाषा एवं कार्यक्षेत्र की व्याख्या कीजिए।
  61. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के भौगोलिक उपागम से आपका क्या आशय है? इसके प्रमुख चरणों का भी वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के विकास की विवेचना कीजिए।
  63. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली का व्याख्यात्मक वर्णन प्रस्तुत कीजिए।
  64. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के उपयोग क्या हैं? विस्तृत विवरण दीजिए।
  65. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र (GI.S.)से क्या तात्पर्य है?
  66. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के उद्देश्य बताइये।
  68. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र का कार्य क्या है?
  69. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के प्रकार समझाइये |
  70. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र की अभिकल्पना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- भौगोलिक सूचना तंत्र के क्या लाभ हैं?
  72. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली में उपयोग होने वाले विभिन्न उपकरणों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली में कम्प्यूटर के उपयोग का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  74. प्रश्न- GIS में आँकड़ों के प्रकार एवं संरचना पर प्रकाश डालिये।
  75. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली के सन्दर्भ में कम्प्यूटर की संग्रहण युक्तियों का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- आर्क जी०आई०एस० से आप क्या समझते हैं? इसके प्रशिक्षण और लाभ के संबंध में विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  77. प्रश्न- भौगोलिक सूचना प्रणाली में प्रयोग होने वाले हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- ERDAS इमेजिन सॉफ्टवेयर की अपने शब्दों में समीक्षा कीजिए।
  79. प्रश्न- QGIS (क्यू०जी०आई०एस०) के संबंध में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- विश्वस्तरीय सन्दर्भ प्रणाली से आपका क्या आशय है? निर्देशांक प्रणाली के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- डाटा मॉडल अर्थात् आँकड़ा मॉडल से आप क्या समझते हैं? इसके कार्य, संकल्पना और उपागम का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- रॉस्टर मॉडल की विवेचना कीजिए। इस मॉडल की क्षमताओं का भी वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- विक्टर मॉडल की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- कार्टोग्राफिक संकेतीकरण त्रिविम आकृति एवं मानचित्र के प्रकार मुद्रण विधि का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- रॉस्टर मॉडल की कमियों और लाभ का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- विक्टर मॉडल की कमियों और लाभ के सम्बन्ध में अपने विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- रॉस्टर और विक्टर मॉडल के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  88. प्रश्न- डेटाम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book